श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर – Shri Kashi Vishwanath Temple history in hindi

उत्तरप्रदेश राज्य के काशी शहर में गंगा नदी के किनारे स्थित है भारत एवं दुनिया भर में प्रसिद्ध भगवान विश्वनाथ का अलौकिक मंदिर…जो काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर से लाखों – करोड़ों शिव भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है.
भारतीय पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने लोककल्याण एवं प्रकृतिकल्याण हेतु भारत मे 12 जगहों पर स्वयंभू प्रगट हुए और लिंग रूप में बिराजमान रहे…उन 12 जगहों को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा. उन 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक काशी विश्वनाथ (kashi vishvanath) भी है.
काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना हजारो वर्षो पहले की गई थी. इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं इस मंदिर में निवास करते है. पुराणों के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने से और गंगा नदी में स्नान करने से सभी तरह के कष्टों एवं पापो से मुक्ति मिलते है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. काशी विश्वनाथ को विश्वेश्वर और विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है..
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास- kashi vishwanath temple history in hindi
काशी विश्वनाथ मंदिर (Shri Kashi Vishwanath Temple) के निर्माण का वर्णन महाभारत सहित शिवमहापुराण में भी मिलता है. शिवपुराण में उल्लेखनीय कोटिरुद्रसंहिता के अनुसार एक समय निर्विकार और चैतन्य परमब्रह्म ने निर्गुण से सगुण शिव रूप धारण किया…वह शिव रूप ही पुरुष और स्त्री रूप में विभाजित हो गए. पुरुष रूप शिव नाम से विख्यात हुआ और स्त्री रूप शक्ति नाम से विख्यात हुआ.
शिव और शक्ति ने अदृश्य होकर श्रीहरि विष्णु और उनकी पत्नी प्रकृति का निर्माण किया. वह दोनों अपने आप को बिना माता – पीता के देख दुखी होने लगे. कुछ समय के बाद आकाशवाणी हुई. आकाशवाणी ने प्रकृति और श्री विष्णु को तपस्या करने के लिए कहा. काफी समय गुजरने के बाद भी विष्णु और प्रकृति को तपस्या के लिये कोई स्थान नही मिला. तब उन्होंने भगवान शिव से प्राथना की…भगवान शिव ने पांच कोष लंबे नगर का निर्माण किया. जो समाज के चलते पंचक्रोशी के नाम से विख्यात हुआ.
पंचक्रोशी में श्रीहरि विष्णु और प्रकृति ने कठोर तपस्या की…कठोर तपस्या के कारण श्रीहरि विष्णु के शरीर से स्वेत बूंद की धारा बहने लगी. इससे आश्चर्य होकर श्रीहरि ने अपना सर हिलाया तो उनके कान के एक मणि नीचे गिरा.
मणि जिस जगह पर गिरा उस जगह को मणिकर्णिका के नाम से जाना जाने लगा.
जब स्वेत जल से पंचक्रोशी डूबने लगी तब भगवान शिव ने उसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया…फिर विष्णु अपनी पत्नी के साथ वही शेष नाग पर शयनरत रहे. श्रीहरि विष्णु की नाभि से परम पिता ब्रह्मा का जन्म हुआ. परम पिता ब्रह्मा भगवान शिव की आज्ञा से सृष्टि का निर्माण किया. भगवान शिव ने लोककल्याण एवं प्रकृतिकल्याण हेतु पंचक्रोशी को सृष्टि में छोड़ दिया. वहाँ भगवान शिव ने स्वयं अविमुक्त लिंग की स्थापना की.
ऐसा माना जाता है कि परम पिता ब्रह्मा का जब एक दिन पूरा होता है…तब सृष्टि में प्रलय आता है. पर भगवान शिव पंचक्रोशी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते है. आज का काशी वही पंचक्रोशी नगर है जिसे भगवान शिव ने सृष्टि में छोड़ा था.
जीवन और जीवनदर्शन की आराधना का स्थान है काशी विश्वनाथ मंदिर हरि और हर के मिलन की अदभुत कहानी है काशी विश्वनाथ मंदिर जीव और शिव के अस्तित्व का प्रमाण है काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञान और संस्कृति के मिलन की पहचान है काशी विश्वनाथ मंदिर
समय बीतता चला गया, हर युग हर समय मे काशी विश्वनाथ की यात्रा निरंतर चलती रही. भगवान,भक्त और भक्ति की आराधना यहाँ गूंजती रही. भारत वर्ष में महादेव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirlinga) आज भी मौजूद है. जिसमे काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को सातवें तथा प्रमुख ज्योतिर्लिंग (jyotirlinga) के रूप में पूजा जाता है.
बार-बार की गई काशी की संस्कृति को मिटाने की कोशिश – attacks on kashi vishwanath
11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था…और ऐसा माना जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने जिस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था वह मंदिर यही है. इतिहासकारों के अनुसार ईस 1194 में मुहमद गौरी ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला लिया था और मंदिर को काफी हद तक नुकसान भी पहुचाया था.
मुहमद गौरी के हमले के बाद कई हिन्दू राजाओ ने मिलकर काशी विश्वनाथ मंदिर को बनवाया…पर ईस 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमद शाह द्वारा फिर तोड़ा गया. डॉ. ऐ. ऐस भट्ट अपनी किताब ‘दान हारावली’ में लिखते है कि 1585 ईसवी में राजा टोडरमल की सहयता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर एक भव्यतिभव्यमंदिर का निर्माण करवाया गया.
18 अप्रैल 1669 को क्रूर मुस्लिम शासक औरंगजेब में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया. यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी ऑफ कोलकाता में आज भी सुरक्षित है. औरंगजेब के फरमान के मुताबित मंदिर तोड़कर उस जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई गई. जिसका वर्णन उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां की किताब ‘मासीदे आलमगीरी’ में मिलता है. औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था. आज भी उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण है.
औरंगजेब के हमले के बाद ईस 1752 से ईस 1780 के बीच मराठा सरदार मल्हारराव होलकर और दत्ताजी शिंदे ने काशी विश्वनाथ मंदिर को फिर से बनाने का निश्चय किया. ईस 1770 में महादजी शिंदे ने दिल्ली के शाशक आलमगीर से काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने की भरपाई करने का फरमान जारी किया पर उस समय तक काशी पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया था. जिसके कारण काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का काम रुक गया था. इसके बाद मालवा की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने ईस 1777 से ईस 1780 के बीच काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण फिर से शरू करवाया.
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर में 1000 किलो सोना का दान किया था…जिसका उपयोग मंदिर का छत्र बनाने में किया गया था. ग्वालियर की महारानी बेजाबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्ञानवापी मंडप का निर्माण करवाया था. नेपाल के महाराजा द्वारा यहां भव्य नंदीजी की प्रतिमा की स्थापना की गई थी.
काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा का समय – Kashi vishvanath temple timings
मंगला आरती | 3:00 A.M. TO 4:00 A.M. |
महारुद्राअभिषेक | 4:00 A.M. TO 6:00 A.M. |
भोग आरती | 11:15 A.M. TO 12:20 P.M. |
संध्या आरती (सप्तरिषि आरती) | 7:00 P.M. TO 8:15 P.M. |
मंदिर व्यवस्था के कारण दर्शन बंद | 9:00 P.M. TO 10:15 P.M. |
श्रृंगार तथा भोग आरती | 10:30 P.M. TO 11:00 P.M. |
मंदिर बंद | 11:00 P.M. TO 3:00 P.M. |
काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य –
Some interesting facts about kashi vishvanath temple
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में विभाजित है. दाहिने भाग में माँ भगवती स्वयं शक्ति के रूप में बिराजमान है…तो दूसरी और भगवान शिव वाम रूप में बिराजमान है. इसी लिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है.
औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के फरमान की खबर जब लोगो तक पहुची…तो भगवान शिव की प्रतिमा को बचाने के लिए उसे एक कुँऐ में छुपा दिया गया. यह कुआँ आज भी ज्ञानवापी मस्जिद और मंदिर के बीच खड़ा है.
काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में तंत्र की दृष्टि से चार द्वार लगवाये गए है. वह कुछ इस प्रकार है…प्रथम :- शांति द्वार, दूसरा :- कला द्वार, तीसरा :- प्रतिष्ठा द्वार, चौथा :- निवृति द्वार. इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है.
काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां शिवशक्ति के एक साथ दर्शन करने मिलते है.
बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में बिराजमान है. दिवस दरमियान विश्वनाथ जी गुरु के रूप बिराजमान रहते है और रात्रि श्रृंगार आरती के बाद राजवेश में होते है. इसीलिए बाबा विश्वनाथ को राजराजेश्वर भी कहा जाता है.
काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे – how to reach kashi vishwanath temple
काशी विश्वनाथ मंदिर तक सीधे पहुचने के लिए केवल थलमार्ग ही है. रेलमार्ग और वायुमार्ग से भीमाशंकर मंदिर तक कोई सीधा मार्ग नही है.
थलमार्ग :- थलमार्ग द्वारा आप काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के किसी भी शहर से पहुच सकते है.अगर आप थलमार्ग द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर जाना चाहते है तो वाराणसी, दिल्ली और जबलपुर के रास्ते से जा सकते है. वाराणसी सभी राजमार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. N.H.2 दिल्ली – कोलकाता मार्ग वाराणसी से ही निकलता है.
रेलमार्ग :- आप काशी विश्वनाथ मंदिर रेलमार्ग द्वारा जाना चाहते है तो निकटतम रेलवेस्टेशन वाराणसी जंक्शन और मुगलसराय जंक्शन है…इसके अलावा 16 अन्य छोटे – बड़े रेलवे स्टेशन है. वाराणसी रेलवेस्टेशन भारत के बड़े शहरों से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. वाराणसी पहुचने के बाद आप किराये पर Taxi या बस बुक कर सकते है.
वायुमार्ग :- आप काशी विश्वनाथ मंदिर वायुमार्ग द्वारा जाना चाहते है तो निकटतम एयरपोर्ट बाबतपुर में लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट है.लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट से काशी विश्वनाथ मंदिर 25 किलोमीटर दूर है. एयरपोर्ट पहुचने के बाद आप किराये पर Taxi या बस बुक कर सकते है.