गंगोत्री धाम का इतिहास – History of GANGOTRI DHAM

Gangotri
gangotri temple

देवभूमि नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड में ऐसे कई तीर्थ स्थल मौजूद है जिनका अपना धार्मिक महत्व है…और इनसे लाखो – करोड़ो श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है. ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित है…जिसे लोग गंगोत्री मंदिर gngotri temple के नाम से जानते है.

गंगोत्री मंदिर gangotri temple को गंगोत्री धाम के नाम से भी जाना जाता है. कुछ दंतकथाओं के अनुसार इसी स्थान पर माँ गंगा धरती पर प्रथम वार अवतरित हुई थी. यह मंदिर छोटे चार धामो में से एक है. उत्तरकाशी से गंगोत्री मंदिर 100 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है. आज हम किसीको चारधाम के बारे में पूछते है तो वह केदारनाथ Kedarnath, बद्रीनाथ badrinath, गंगोत्री Gangotri और यमुनोत्री  yamunotri के बारे में बताते है…जब कि यह छोटे चारधाम है. चारधाम chardham के रूप में बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारका और रामेश्वरम को पूजा जाता है.

छोटे चारधाम Chote chardham स्थल Place
बद्रीनाथ Dadrinath चमोली जिला, उत्तराखंड Chamoli, Uttarakhand
केदारनाथ
Kedaranath
रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड Rudraprayag, uttarakhand
गंगोत्री धाम
Gangotri dham
उत्तरकाशी, उत्तराखंड Uttarakashi, uttarakhand
यमुनोत्री धाम
Yamunotri dham
यमुनोत्री ज़िला, उत्तराखंड Yamunotri, uttarakhand

गंगोत्री धाम का इतिहास – History of GANGOTRI DHAM

हिन्दू पौराणिक कथाओं की माने तो दुनिया मे भारत ही एक ऐसा देश है जहां पर हर कण में भगवान का वास माना जाता है. भारत मे मौजूद सभी नदियों का अपना महत्व है. यहां पर नदियों को भी पवित्र और पूजनीय माना जाता है.

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ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित है…जिसे लोग गंगोत्री मंदिर के नाम से जानते है.

यह कहानी हमें शिवमहापुराण Shivapuran में वर्णित मिलती है. शिवमहापुराण Shivapuran के अनुसार गंगा नदी पहली बार जब धरती पर उतरी तब वह स्थान को गंगा उतरी के नाम से जाना जाता था. परंतु कालक्रम के अनुसार वह नाम गंगोत्री हो गया.

भारत मे गंगा नदी को कई नाम से जाना जाता है. पर उत्तराखंड में स्थित गंगा नदी को दूसरे भागीरथी नदी के नाम से भी जाना जाता है. ऋषि भगीरथ ने कठोर तपस्या करके गंगा को भगवान शिव से मांगा था.

ऋषि भगीरथ के एक पूर्वज राजा सागर ने एक बार अपनी इच्छा से अश्वमेघ यज्ञ करवाया था. अश्वमेघ यज्ञ की पूर्णाहुति पर राजा सागर ने राज्य विस्तार के हेतु एक घोड़े को पृथ्वी की परिक्रमा हेतु छोड़ा.

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राजा सागर ने अपने पुत्रों को घोड़े के साथ भेजा ताकि वह बिना रुकावट के पृथ्वी की परिक्रमा कर सके. इन्द्रदेव ने घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. क्योकि इन्द्रदेव को डर था कि राजा सागर उनका सिंहासन ना जीत ले.

राजा के पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुचे तब उन्होंने घोड़े को वहाँ देखा. उन्होंने ने कपिल मुनि को बहुत भला बुरा कहा. कपिल मुनि ने क्रोधित हो कर उन सभी पुत्रो को भस्म कर दिया.

ऋषि भगीरथ अपने पूर्वजों को इस श्राप से मुक्त करवाना चाहते थे. इसलिये उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रस्सन किया.

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ऋषि भगीरथ ने भगवान शिव से वरदान के रूप में माँ गंगा को धरती पर अवतरित करने का आग्रह किया. पहली बार जब माँ गंगा धरती पर जिस जगह पर उतरी उस जगह को पहले गंगा उतरी कहते थे. पर समय चलते उस जगह का नाम गंगोत्री धाम पड गया.

गंगोत्री मंदिर का इतिहास – History of GANGOTRI TEMPLE

कुछ पौराणिक कथाओं की माने तो गंगोत्री मंदिर को सबसे पहले आठवीं शताब्दी महाविद्वान आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था.

परंतु मंदिर के पास मीले कुछ शिलालेखों के अनुसार गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में गोरखा रेजीमेंट के जरनल अमरसिंह थापा ने करवाया था. जरनल अमरसिंह थापा ने ही मंदिर में माँ गंगा की भव्य मूर्ति को स्थापित करवाया था.

गंगोत्री मंदिर gangotri temple की मरमत 20वीं सदी में जयपुर के राजवी माधोसिंह ने करवाई थी. गंगोत्री मंदिर समुद्र तल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. गंगोत्री मंदिर का निर्माण सफेद ग्रेनाइट के पत्थरों से करवाया गया है. यह 20 फिट ऊंचा चमकदार मंदिर है.

केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम की तरह गंगोत्री धाम भी वर्ष के छह माह बंद रहता है…और छह माह भक्तो के लिए खुला रहता है. गंगोत्री धाम को अक्षय तृतीया तिथि पर खोला जाता है…और दीपावली के दिन मंदिर को बंद किया जाता है.

मंदिर को छह माह तक बंद रखने का प्रमुख कारण यहां का वातावरण है. दीपावली के दिन माँ गंगा की मूर्ति को मुखवा गांव के मरकंडी आश्रम लाया जाता है…और अगले छह माह तक यही पर उनकी विधिवत पूजा अर्चना की जाती है.

गंगोत्री धाम को माँ गंगा का उदगम स्थल भी माना जाता है. भागीरथी नदी, जानवी नदी, मंदाकिनी नदी, भिलगंगा, ऋषिगंगा, अलकनंदा और सरस्वती नदी से मिलकर गंगा नदी बहती है. माँ गंगा यहां पर सात धाराओं में बहती है.

गंगोत्री धाम तक कैसे पहुचे – How to reach Gangotri Dham

गंगोत्री धाम gangotri dham तक सीधे पहुचने के लिए केवल थलमार्ग ही है. रेलमार्ग और वायुमार्ग से गंगोत्री धाम तक कोई सीधा मार्ग नही है.

rameshwar Jyotirling Temple by car

थलमार्ग :- थलमार्ग द्वारा आप गंगोत्री धाम gangotri dham भारत के किसी भी शहर से पहुच सकते है.अगर आप थलमार्ग द्वारा गंगोत्री धाम जाना चाहते है तो ऋषिकेश, हरिद्वार और देरादून के रास्ते से जा सकते है. ऋषिकेश, हरिद्वार और देरादून पहुचने के बाद गंगोत्री धाम के लिए आपना साधन बुक कर सकते है.

rameshwaram Jyotirling Temple by train

रेलमार्ग :- आप गंगोत्री धाम gangotri dham रेलमार्ग द्वारा जाना चाहते है तो निकटतम रेलवेस्टेशन ऋषिकेश है. ऋषिकेश रेलवेस्टेशन भारत के बड़े शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. ऋषिकेश पहुचने के बाद आप किराये पर Taxi या बस बुक कर सकते है.

rameshwar Jyotirling Temple by Airplane

वायुमार्ग :- आप गंगोत्री धाम वायुमार्ग द्वारा जाना चाहते है तो निकटतम एयरपोर्ट देहरादून में जोली ग्रांट है. देरादून गंगोत्री धाम से 241 किलोमीटर दूर है. देरादून पहुचने के बाद आप किराये पर Taxi या बस बुक कर सकते है.

गंगोत्री मंदिर के आसपास घूमने के स्थल – Places to visit around Gangotri temple

Harsil

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