भगवान हनुमानजी की जीवनी | Sankatmochan Hanuman Biography in Hindi | Sankatmochan Hanuman Ashtak lyrics
Sankatmochan Hanuman
(Load Hanuman Biography in Hindi) भगवान हनुमानजी की जीवनी
पवनपुत्र भगवान हनुमानजी hanuman प्रभु श्री राम Prabhu sriram के अनन्य भक्त थे…और यह बहुत कम लोग जानते है कि भगवान शिव का 11वां रुद्र महाअवतार पवनपुत्र हनुमानजी Pavanputra hanumanaji को ही माना गया है
हिन्दू धर्मग्रंथो की माने तो हनुमानजी का जन्म Hanumanaji’s birth आज से 59 हजार 112 वर्ष पहले त्रेता युग मे वानरराज केशरी और माता अंजनी के घर मे हुआ था. हनुमानजी Hanumanaji का जन्म चैत्र पूर्णिमा के मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न की मंगल वेला में हुआ था.
आज इस लेख में हम भगवान हनुमानजी bhagavan Hanumanaji के उन रहस्यों के बारे में बताने वाले है जो बहुत ही कम लोग जानते है.
कैसे मिला था माता अंजनी को श्राप – How Mata Anjani was cursed
माता अंजनी अपने पूर्व जन्म में देवराज इन्द्र के महल में अप्सरा थी, उनका नाम पुंजिकस्थला था. उनका स्वभाव चंचल था. उनकी चंचलता के स्वभाव के कारण एक बार तपस्या में लीन ऋषि के साथ अभद्र व्यवहार किया था. तब ऋषि ने क्रोधित होकर पुंजिकस्थला को श्राप दिया की वह वानर रूप धारण करेंगी.
तब पुंजिकस्थला ने क्षमा मांग कर ऋषि से श्राप वापस मांगने की विनती की तब ऋषि ने दया भाव से कहा कि तुम्हारा वानर रूप भी परम तेजस्वी होगा और तुम एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दोगी.
तपस्या मैं लीन ऋषि के श्राप मिलने के पश्चात पुंजिकास्थला को 1 दिन इंद्रदेव indradev ने मनचाहा वरदान मांगने को कहा तब पुंजिकास्थला ने कहा की, ‘संभव हो तो ऋषि द्वारा दिए गए श्राप को मुक्ति प्रदान करे’.
ऋषि ने श्राप दिया था कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो में वानर का रूप धारण करुंगी मेरा ऐसा रूप होने के बाद भी उस व्यक्ति का प्रेम मेरे प्रति कम नहीं होगा. इंद्रदेव ने पूरा वृतांत सुनने के पश्चात कहा कि तुम्हें धरती पर जाकर निवास करना होगा.
तुम्हे वहां एक राजकुमार से प्रेम होगा जो तुम्हारा पति बनेगा विवाह के पश्चात तुम शिव के 11वें एवं महापराक्रमी अवतार को जन्म दोगी…और इसके पश्चात तुम्हे श्राप से मुक्ति मिल जाएगी.
हनुमानजी के जन्म की कहानी – Story of Hanuman’s birth
देवराज इन्द्र के वचन सुनकर पुंजिकस्थला अंजनी नाम धारण कर धरती पर आई. वहां उनकी मुलाकात वानरराज केसरी से हुई. फिर अंजनी और केसरी को एक दूसरे से प्रेम हुआ और उनका विवाह एक दूसरे से विवाह कर लिया.
काफी समय पश्चात भी दोनों संतान सुख से वंचित थे. तब देवी अंजनी मातंग ऋषि के पास जाकर अपनी पीड़ा बताई. तब मातंग ऋषि ने उन्हें नारायण पर्वत पर स्थित स्वामी तीर्थ जाकर 12 वर्ष तक पवन देव का उपवास करके तप करने के लिए कहा.
इस प्रकार की तपस्या से प्रसन्न होकर पवन देव ने देवी अंजनी को वरदान दिया कि तुम्हें अग्नि सूर्य सुवर्ण वेद वेदांगो का मर्मज्ञ और बलशाली पुत्र प्राप्त होगा. चैत्र पूर्णिमा के मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न की मंगल वेला आती है और इसी दिन वानरराज केसरी के महल में नन्हे रूद्र अर्थात मारुति जन्म लेंगे.
कैसे बने हनुमानजी पवनपुत्र – How to become Pawanputra Hanuman
इस प्रकार पवन देव के वरदान के कारण हनुमानजी Hanumanji का जन्म हुआ था. कहा जाता है कि जन्म से ही मारुति बहुत चंचल मन और शरारती थे. एक दिन उन्हें भूख लगती है और वे आकाश की ओर निहारते हैं.
तभी उनकी नजर सूर्यदेव Suryadev पर पड़ती है…और वे उन्हें स्वादिष्ट फल मानकर तीव्र गति से सूर्यदेव की ओर चल पड़ते हैं. और फिर सूर्यदेव को ग्रहण कर लेते हैं. तभी देवराज इन्द्र सूर्यदेव को मारुति के मुख से निकालने के लिए शक्तिशाली वज्र का प्रहार करते हैं.
वज्र के प्रहार के कारण नन्हे मारुति मुर्जित हो जाते है और नीचे गिर जाते हैं…वज्र प्रहार के कारण उनकी हनु टूट जाती है. इससे पवन देव बहुत ही क्रोधित हो जाते हैं. और पूरे संसार में अपनी गति को रोक देते हैं. यह भयानक स्थिति को देखकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित सर्वदेव मारुति के पास पहुंच कर उनकी मूर्छा भंग कर देते हैं.
कैसे मिले हनुमानजी को मिले वरदान – How Sankatmochan Hanuman got a boon
ब्रह्मदेव barmdev दीर्घायु महात्मा और अजय होने के साथ-साथ इच्छा अनुसार रूप धारण कर संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करने का वरदान मारुति को देते है.
इसी प्रकार सूर्यदेव नन्हे मारुति को अपनी तेज का 100 वां भाग देते हैं. मृत्यु के देवता यम उन्हें वरदान देते हैं कि, वे उनके दंड से अवधी और निरोगी रहेंगे.
धनपति कुबेर उन्हें युद्ध में कभी भी न हारने का वरदान देते हैं. इसी प्रकार महादेव उन्हें शत्रुओं से अविध रहने का वरदान देते हैं.
देव शिल्पी विश्वकर्मा देव से उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला. देवराज इंद्र से उन्हें वज्र से सदैव सुरक्षित रहने का वरदान मिला. जल के देवता वरुण उन्हें जल से सदैव हानि ना रहने का वरदान देते हैं.
इसी प्रकार अन्य देवता के द्वारा भी वरदान मिलते हैं. और उस दिन के बाद से संसार नन्हे मारुति को सदैव हनुमान के नाम से जानता है. बाद में हनुमानजी को सूर्यदेव से विभिन्न प्रकार की सिद्धियां और दुर्लभ ज्ञान की प्राप्ति होती है…और इसी ज्ञान और शक्ति के दम पर कलयुग मैं भी वह सूर्यदेव के समान प्रकाशित है.
हनुमानजी और भगवान श्री राम का मिलन – Sankatmochan Hanuman and Lord Shri Ram’s milan
भक्त हनुमान और राम hanuman and ram के पहला मिलन किष्किंधा के वन में हुआ था. यह मिलन पौराणिक ग्रंथ “श्री वाल्मीकि रचित रामायण” sri valmiki ramayana में उल्लेखनीय है. भक्त हनुमान hanuman की श्री राम sriram से पहली मुलाकात कब, कहां और कैसे हुई थी इसके अलावा “श्री तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस” tulsidas rachit ramcharitmanas में भी उल्लेख किया हुआ है.
यह प्रसंग रामायण ramayana में “किष्किंधा कांड” से भी जाना जाता है…यह तब की बात है कि, जब बाली के डर से भयभीत हुए सुग्रीव उनके मित्र हनुमान जी की शरण में आते हैं…और उन्हें छुपने के लिए हनुमान जी की सहायता मांगते हैं. तब वन में दो पुरुष सन्यासी वस्त्र धारण किए हुए हैं.
मगर उनके पास अधिक शस्त्र थे. यह देखकर सुग्रीव sugriv भयभीत हो जाता है कि, उनके भाई बाली ने कोई गुप्त सैनिक उन्हें मारने के लिए भेजे है. तत्पश्चात, वह भयभीत होकर हनुमान जी को बताता है…और हनुमान जी ब्राह्मण का वेश धारण कर वन में पहुंच जाते हैं. और उन दो पुरुष से पूछताछ करते हैं कि वह कौन है और कहां से आए हैं.
तब श्री राम sri ram उन्हें सीता shitamata के अपहरण के बारे में घटना बताते हैं. यह सुनकर हनुमान जी hanumanji को पता चल जाता है कि, यह तो प्रभु श्रीराम sriram है वह बहुत खुश हो जाते हैं. उनकी खुशी उनके चेहरे से साफ जलकती है…और वह अपने असली रूप में आकर प्रभु श्री राम के चरणों में गिर पड़ते हैं. उनके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था. मानो उन्हें पूरा संसार मिल गया था और उन्होंने प्रभु श्रीराम से माफी मांगी कि वे उन्हें पहचान नहीं सके.
Sankatmochan Hanuman Ashtak lyrics and Hanuman chalisa lyrics
(Sankatmochan Hanuman Ashtak lyrics) संकट मोचन हनुमानाष्टक अष्टक
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
हनुमान चालीसा | hanuman chalisa
श्री शंकर महाराज Shankar Maharaj Biography
(Sankatmochan hanuman chalisa lyrics॥ श्री हनुमान चालीसा ॥
॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥