मौत को भी मारने वाले ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव की जीवनी – Param Vir Chakra honored yogendra singh yadav Biography

“ना में नेता हु, ना में अभिनेता हु और नाही में कवि हु,भाषा की परिभाषा से अनभिक हु,

में इस देश का एक सेवक हु,जो भारत माँ के आंचल पर लगे धब्बो को अपने लहू से साफ करता हु.”

यह बात कही है, भारत के परम वीरचक्र से सम्मानित, कारगिल के हीरो ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव yogendra singh yadav ने. भारत माता का वो सपूत जिसके बिना कारगिल युद्ध को जितना असंभव था. जिसने कारगिल युद्ध kargil war मे टाइगर हिल को जीतने में अपना सर्वोच्च दे दिया था.

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आइये जानते है, मौत को भी मौत के घाट उतार ने वाले सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव yogendra singh yadav के जीवन के बारे में.

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव की जीवनी – Param Vir Chakra honored yogendra singh yadav Biography

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सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुआ था. योगेन्द्रसिंह यादव yogendra singh yadav </span >के पिता करणसिंह यादव भी आर्मी के रिटायर्ड अफसर थे. मातृभूमि से प्यार उन्हें विरासत में मिला था.और यह प्यार उनकी उम्र के साथ-साथ बढ़ता चला गया. योगेन्द्रसिंह यादव ने प्रारंभिक शिक्षा औरंगाबाद के सरकारी स्कूल से की थी. उनका बचपन अपने पिता की बहादुरी के किस्से सुनकर बिता था. इसीलिए मातृभूमि की सेवा करने का जज्बा उनमे बचपन से ही था.

भारत माता की सेवा करने का जज्बा उनमे इतना था कि, केवल 16 वर्ष 5 महीने की उम्र में योगेन्द्रसिंह यादव yogendra singh yadav भारतीय सेना में शामिल हो गए थे. जिस उम्र में अन्य बच्चे खेल-कूद में अपना जीवन व्यतीत करते है, वही योगेन्द्रसिंह यादव देश की सेवा करते थे.

छोटी उम्र से ही सेना में शामिल होने के कारण उनके पास युद्ध का कोई खास तजुरबा नही था. वह अपने से बड़े पोस्ट वाले साथियों के साथ मिलकर कुछ न कुछ शिखते रहते थे.

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yogendra singh yadav </span >का मानना है कि, ‘शिखने के लिए स्कूल, कॉलेजो की कोई जरूरत नही है. आप हर जगह से शिख सकते है, शिखने की लगन होनी चाहिए.’

19 साल की उम्र में कारगिल युद्ध kargil war मे शामिल हुए

आप और हम सभी जानते है कि, वर्ष 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच जमीन विवाद को लेकर कारगिल युद्ध हुआ था. कारगिल युद्ध kargil war के समय 5 मई 1999 को योगेन्द्रसिंह यादव की शादी थी. और 20 मई 1999 को वह कारगिल युद्ध मे शामिल होने के लिए बॉर्डर पर चले गए थे.

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योगेन्द्रसिंह यादव 18वीं ग्रेनेडियरर्स बटालियन के सिपाही थे. उनकी बटालियन कश्मीर वैली में उग्रवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाती थी. पर कारगिल युद्ध के दौरान 18वीं ग्रेनेडियरर्स बटालियन को द्रास सेक्टर में भेज दिया था.

22 मई 1999 को योगेन्द्रसिंह यादव yogendra singh yadav </span >अपनी बटालियन के साथ तालोलिन पहाड़ी पर पहुचते है. जहा उन्हें दुश्मनो के खिलाफ युद्ध करना था. परंतु उनकी फिटनेस की देखकर उनके मेजर ने उन्हें युद्ध मे व्यस्त सैनिकों को फूड सप्लाय का काम दिया था.

यह युद्ध 22 दिनों तक चला था. 22 दिनों के युद्ध के बाद भारतीय सेना को कारगिल युद्ध मे पहली सफलता मिली. 12 जून 1999 को भारत ने तालोलिन पहाड़ी को फिर से अपने कब्जे में ले लिया था.

दूसरे टास्क के रूप में योगेन्द्रसिंह यादव को अपनी बटालियन के साथ मिलकर टाइगर हिल को अपने कब्जे में लेना था. टाइगर हिल एक तरफ ढलान वाली थी और दुशरी तरफ से सीधी चढ़ान वाली थी. योगेन्द्रसिंह यादव yogendra singh yadav को अपने 6 साथियों के साथ मिलकर 16500 फुट ऊंची टाइगर हिल की सीधी चढ़ाई को चढ़कर दुश्मन को मार गिराना था.

2 रात और 1 दिन की कठिन चढ़ाई के बाद योगेन्द्रसिंह यादव आने 6 साथियों के साथ टाइगर हिल की चोटी पर पहुच गए थे. परंतु दुश्मन सिपाहीयो ने उन्हें आते हुए देख लिया था. इसीलिए उन्हें संभलने का मौका ही नही मिला था.

अचानक हुई फायरिंग में सूबेदार योगेन्द्रसिंह यादव yogendra singh yadav को 16 गोलियां गली थी. जिससे उनका एक हाथ और एक पांव पूरा छलनी हो गया था. तब सूबेदार योगेन्द्रसिंह यादव ने कहा था कि, “दुश्मन को मौत के घाट उतारने से पहले अगर मुजे मौत आ गई तो, में मौत को भी मौत के घाट उतार दूंगा.”

इसी जज्बे के साथ सूबेदार योगेन्द्रसिंह यादव ने पाकिस्तान के 2 बंकर और कई दर्जन सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था. पाकिस्तानी सैनिकों ने जब सूबेदार योगेन्द्रसिंह यादव के सीने पर गोलियां चलाई थी तब उनके जैब में रखे 5 रुपये के सिक्के से उनकी जान बची थी.

सूबेदार योगेन्द्रसिंह यादव को कारगिल युद्ध मे अपना अदम्य साहस दिखाने की वजह से उन्हें भारत सरकार द्वारा परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. योगेन्द्रसिंह यादव भारत के पहले कम उम्र के परमवीर चक्र सम्मानित सैनिक बने थे.

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