Shankar Maharaj Biography
जन्म तिथि : साल १८०० के आसपास
जन्म स्थान : मंगलवेधे, पंढरपुर के एक धार्मिक परिवार मे
कार्यकाल : १८०० से १९४७
स्पर्श दीक्षा : स्वामी समर्थ अक्कलकोट
दाह संस्कार और समाधि : पुणे मे, धनकवाड़ी, २४/०४/१९४७

शंकर महाराज Shankar Maharaj ने स्वयं एक बार कहा था, ‘हम कैलाश से आए है!’ नाम भी ‘शंकर’ है! वे वास्तव मे शिव के वैराग्य अवतार होंगे. नासिक जिले मे अंतपुर नाम का एक गांव है. वहां चिमनाजी नाम के एक व्यक्ति रहते थे. परंतु उनके कोई बच्चे नहीं थे. वे एक शिव के भक्त थे. एक बार उन्हें स्वप्न मे भगवान शिव के दर्शन हुए.
स्वप्न में भगवान शिव ने कहा तुम जंगल मे जाओ आपको बच्चा होगा.’ वे उस दृष्टि की तरह जंगल में चले गए. वहां उन्हें यह दो साल का बच्चा मिला! इसे शंकर के प्रसाद के रूप मे ‘शंकर’ नाम दिया गया था. शंकर कुछ वर्षों तक अपने माता-पिता के साथ रहा. बाद मे इस बालक ने माता-पिता को आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘तुम्हें पुत्र होगा!’ शंकर उसे आशीर्वाद देकर बाहर आया.
न नाम, न रूप, न स्थान. श्री शंकर महाराज Shankar Maharaj का एक ही नाम नहीं है. शंकर महाराज कई नामो से जाते है. उन्हें ‘सुपद्य’, ‘कुँवरस्वामी’, ‘गौरीशंकर’ के साथ-साथ ‘शंकर’ नाम से भी जाना जाता था. सिर्फ नाम जानते है! वे कुछ अन्य नामों से जा रहे होंगे. जैसे ‘नाम’ एक नही होता, वैसे ही उनका ‘रूप’ होता है! कुछ स्थानों पर उनका उल्लेख ‘अष्टावक्र’ के रूप मे भी मिलता है. आंखें बड़ी-बड़ी थीं, सीधे हाथ थे, घुटनों के बल बैठने का ढंग था. ‘यह रूप!’ दूसरे अर्थ में ‘कई रूप!’
शंकर महाराज Shankar Maharaj कभी एक स्थान पर नही होते थे. त्रिवेणी संगम, सोलापुर, अक्कलकोट, त्र्यंबकेश्वर, नासिक, नगर, पुणे, हैदराबाद, तुलजापुर, औदुम्बर, श्रीशैल – वह ऐसे स्थानों पर भ्रमण करते थे! ऐसा भी नही है कि केवल वही स्थान होंगे! अर्थात् शंकर महाराज का ‘नाम-रूप-स्थान’ बता पाना कठिन है. क्योंकि सही अर्थों में वे निरासक्त थे! इसलिए थे ‘शंकर’!
कई लोगो ने श्री शंकर महाराज को कई प्रकार से योगिराज मान लिया है. वे स्वयं हमेशा कहा करते थे, ‘सिद्धि का अनुसरण मत करो!’ लेकिन उन्होंने अनजाने में अपनी योग शक्ति को बहुत से लोगों के ध्यान मे ला दिया. कुछ को ‘फेम’ के लिए ‘सिद्धि’ चाहिए! उसे यश, धन और शिष्य-परिवार की प्राप्ति होती है ! इसलिए श्री शंकर महाराज ने कहा, ‘उपलब्धियों के पीछे मत जाओ’ उन्होंने स्वयं सिद्धियां प्राप्त कीं, लेकिन वे धन, यश या शिष्य-पारिवारिक उपाधियों के पीछे नहीं गए.
वे स्वयं वास्तव मे सिद्धियों का अनुसरण नहीं करते थे. लेकिन चिकित्सक और विद्वान भी मानते थे कि शंकर महाराज अलौकिक पुरुष थे. आचार्य अत्रे, न्यायरत्न विनोद जैसे प्रकंद पंडित शंकर महाराज के आदरणीय थे.ये विद्वान अपनी कीमत जानते थे.
शंकर महाराज ने कहा था, ‘मुझे जाति या धर्म की परवाह नहीं है. वह स्वयं वास्तव में सभी के साथ समानता का व्यवहार करता है. इसलिए मुसलमान भी उनके पास आते है. एक मुसलमान ने उन्हे अपनी कुछ समस्याएं बताईं. शंकर महाराज उन्हें क्या बताएं? ओह, तुम पूजा नहीं करते. तुम प्रार्थना करते रहो. तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा. कौन जाने उन्होंने क्या सीखा था! लेकिन कुछ विद्वान विद्वानों को उन्होंने धाराप्रवाह अंग्रेजी में उत्तर दिए. जाने कैसे और कहाँ से उन्हें अंग्रेजी का ज्ञान हो गया.
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