shatrunjay tirth
श्री शत्रुंजय तीर्थ Shatrunjay tirth
शत्रुंजयगिरि पर्वत पश्चिमी भारतीय राज्य गुजरात मे सौराष्ट्र के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र मे अग्निकॉन मे स्थित है. जो जैन मंदिरों की श्रृंखला मे सबसे अव्वल है.
शत्रुंजयगिरि तीर्थस्थल Shatrunjaya Tirth की तीर्थ यात्रा, जिसे प्राचीन समय से सिद्धक्षेत्र के रूप मे संदर्भित किया जाता है और जनता के बीच शास्वतगिरि के रूप मे जाना जाता है. प्रत्येक जैन के लिए यहाँ रहना एक आजीवन सपना है और जीवन का एक परम लक्ष्य है.
पालीताना Palitana
पालीताणा, गुजरात राज्य के भावनगर जिले मे स्थित है. जो समुद्र तल से ६६ मीटर या २१७ फीट की ऊंचाई पर १३ वर्ग किलोमीटर मे फैला एक सुंदर शहर है. २०११ की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या १.७० लाख है. जिसमे ५२ प्रतिशत पुरुष और ४८ प्रतिशत महिलाएं है. १५ प्रतिशत जनसंख्या ६ वर्ष से कम आयु के बच्चे है.
अहमदाबाद से २२५ किलोमीटर और भावनगर से ५१ किलोमीटर दूर पालीताणा नगर के दक्षिण-पश्चिम मे शत्रुंजय की ऊँची पहाड़ी का जीवन है! पालीताना रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड से लगभग २ किलोमीटर लम्बी सड़क है जिसके दोनों ओर गाँव एवं विभिन्न बाजार है. बेहतर सुविधाओं वाली अंदाजन १४० से ज्यादा धर्मशालाएं चारो ओर बिखरी पड़ी है. २ किलोमीटर की इस सड़क से गुजरो और शत्रुंजय पर्वत की तलहटी मे आ जाओगे!!
क्षेत्रुंजय का इतिहास Shatrunjay Tirth
History
क्षेत्रुंजय का इतिहास और महत्व प्राचीन काल से ही जैन समाज के लिए बहुत ही बड़ा है.
हर साल जैन समाज के लोग शत्रुंजय तीर्थ पर दर्शन करने के लिए जाते है. जैन समाज के लोगो का यह मानना है कि यहां पर जाने से मोक्ष प्राप्त होता है. जो व्यक्ति यहां पर आकर भगवान आदिनाथ के दर्शन करता है उसको सुख, शांति और समृद्धि प्राप्ति होती है. इस तीर्थ स्थल से जैन समाज के लोगो की आस्था जुड़ी हुई है.
पौराणिक काल मे अर्थात् इतिहास के वर्षों की गणना और रेखांकन से पहले के युग मे इस प्रतापी तीर्थ का वैभव और प्रभाव चरसी से ऊपर था. उनके चरणों से यह तीर्थ पवित्र हो गया. बाद के युगों मे, इस मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार किया गया.
विक्रमसंवत् १०० या १०८ मे, युगप्रधान आचार्य वज्रस्वामी वरदा, मधुमती-महुवा, जावदिशा (जावदिशा) की शाही प्रतिष्ठा, ने अपार धन दान करके श्रीशत्रुंजय महातीर्थ के जीर्णोद्धार के लिए एक सुंदर डेरासर बनाया और राजा के तहखाने से आदिनाथ की छवि को औपचारिक रूप से स्थापित किया.
जगमल्ला की धर्मचक्र सभा तक्षशिला नगरी से यह घटना शत्रुंजय के इतिहास मे 14वें उद्धार के रूप मे स्थापित हुई. उसके बाद लगभग बारह सौ वर्षों का इतिहास अज्ञात है या इसके अंक उपलब्ध नही है. क्योंकि इतिहास को समय की खाई मे धकेल दिया गया है इस समय के दौरान की घटनाओं का कोई कालक्रम संरक्षित या उपलब्ध नहीं है.
अति प्राचीन इक्ष्वाकु वंश की क्षत्रिय परंपरा से शुरू होकर विकास के कई चरण, चालुक्य युग (10वीं-12वीं शताब्दी), सोलंकी युग (12वीं-13वीं शताब्दी), मुस्लिम नवाबी युग (13वीं-17वीं शताब्दी), का काल अग्रेजी शासन (18वीं-19वीं शताब्दी) तथा स्वराज्योत्तर काल से लेकर वर्तमान काल तक विकास के क्षेत्र का विस्तार होता रहा. साथ ही समय-समय पर यहॉ विनाश की आंधी चलती रही.
शत्रुंजय तीर्थ shatrunjay tirth की ऐतिहासिक विकासधारा सोलंकीराज के दौरान गुजरात के महामंत्री उदयन के समय से ही शुरू हुआ था.
शत्रुंजय तीर्थ shatrunjay tirth पर लिखे हुए शिलालेख से पता चलता है की, आज का मुख्य मंदिर पहले लकड़ी से कालिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रचार्य और गुजरात के राजा कुमारपालदेव के समय मे बना था. राजा कुमारपालदेव के महामंत्री उदयन ने यह मंदिर पत्थर से बनाने का संकल्प लिया था की ” जब तक यह मंदिर पत्थरों से नही बना लूंगा तबतक मे जमीन पर ही सोऊंगा.”
परंतु वह आपने जीवल काल मे यह मंदिर को पत्थर से नही बना सके. उदयन की यह प्रतिज्ञा उनके पुत्र और राजा कुमारपालदेव के दूसरे महामंत्री बाहड़ ने पूरी की. श्री शत्रुंजय तीर्थ का मुख्य मंदिर पत्थर मे बनाया गया था और विक्रमसंवत 1213 में कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य के आशीर्वाद से प्रतिष्ठित किया गया था.
इसके बाद वाघेला साम्राज्य मे महामंत्री वस्तुपाल और तेजपाल के काल मे और भी नये देव मन्दिर बनने लगे और धीरे-धीरे श्री शत्रुंजय तीर्थ की मूर्तिकला मे वृद्धि हुई.
पर यह बहुत साल तक नही चला, १४वीं सदी की शुरुआत मे गुजरात मे मुस्लिम आक्रमण बहुत ही बढ़ गया और इसके चलते श्री शत्रुंजय तीर्थ भी बहुत खतरे मे आ गया. यह मंदिर पर भी कई बार मुस्लिम आक्रमणकारो ने हमला किया. कई बार यह मंदिर तोड़ा और बनाया गया.
बाद मे पाटन के श्रेष्ठी देशलाशा के राजा मेधावी पुत्र समरशा ओसवाल ने यहां के मंदिर को बचाने की पहल की. उन्होंने इसकी प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए पहल की और उन्होंने दो साल के कम समय मे मंदिर के कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया और विक्रमसंवत १३४१ मे इसकी प्रतिष्ठा को स्थापित किया. श्री शत्रुंजय तीर्थ का जीर्णोद्धार तत्कालीन महान आचार्य भगवंत श्री सिद्धसेंसूरीश्वरजी के पावन सान्निध्य मे स्वयं सिद्धसेंसूरीश्वरजी द्वारा किया गया.
दो शताब्दियो के बाद, सोलहवीं शताब्दी के शुरुआत मे मुस्लिम हमलों के कारण मंदिर को फिर से नष्ट कर दिया गया.
इस बार चित्तौड़गढ़ chittorgarh के मंत्री स्वनामधन्य कर्मशा ने बड़े साहस का परिचय देते हुए विक्रमसंवत १५७८ मे इस तीर्थ का 16वां जीर्णोद्धार कराया और महान मंत्रविद्विशारद आचार्य भगवंत विधामनसूरिजी के हाथों प्रतिष्ठा पूरी हुई. यह महान आचार्य भगवंत इतने विनम्र थे और सुर्खियों से दूर रहते थे कि उन्होंने प्रतिष्ठा के समय शिलालेख मे अपना नाम डाले बिना “सर्व सुरिभ्य” लिखवाया.
श्री शत्रुंजय तीर्थ के जीर्णोद्धार की परंपरा को महामंत्री कर्मशाह द्वारा आगे बढ़ाई गई. यह मोक्ष इतने शुभ मुहूर्त मे और इतनी मजबूत नींव पर हुआ है कि किसी भी आपदा के कारण या समय बीतने के कारण मंदिर के संरक्षण के लिए नया उद्धार करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
पालिताना मंदिर का समय – Palitana Temple Timings
जैन समाज के नियम के मुताबिक शाम के बाद न तो भोजन खाया जाता है और ना ही उसे लिया जा सकता है, इसलिए संध्या होने से पहले सभी दर्शनाथीयो को श्री शत्रुंजय महातीर्थ से नीचे उतरना पड़ता है. जैन समाज का मानना है की, रात्रि मे सभी देवता श्री शत्रुंजय महातीर्थ मे विश्राम करते है, इसीलिए सभी मन्दिरों के कपाट रात्रि मे बन्द कर दिए जाते है.
आपको बता दें यहां पहाड़ के ऊपर अंगद पीर नामक एक सिद्ध स्थान है, जहां का निसन्तान लोगों के लिए बेहद महत्व है, ऐसा कहा जाता है कि इस पीर साहब के आशीर्वाद से निसंतान लोगों को गोद भर जाती है.
पालिताना मंदिर तक कैसे पहुंचे? – How to Reach Palitana Jain Temple
श्री शत्रुंजय महातीर्थ से सबसे निकटतम एयरपोर्ट गुजरात के भावनगर मे है. जो कि पालिताना से दूरी ६२ किलोमीटर है. वहीं इस एयरपोर्ट से पालिताना तक बसों और टैक्सी आदि के माध्यम से भी जा सकते है. वहीं पालिताना मंदिर जाने के लिए भक्तजन रेल मार्ग या फिर सड़क मार्ग से भी आसानी से आ सकते है.
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