
Vanraj Chavda History in hindi
दोस्तों, बचपन से आज तक आपने कई मुगल शाशक और यूनानी शाशको की वीरता और बहादुरी की कई कहानिया पढ़ी और सुनी होगी. पर आज हम आपको अपने इस लेख में भारत के एक ऐसे हिन्दू शाशक के बारे में बताएंगे जिनके बारे में आपने बहुत कम या कभी पढ़ा नही होगा.
प्राचीन भारत में उतरी गुजरात का एक ऐसा प्रदेश जिस पर मुस्लिम हमलावरों ने कई सालो तक शाशन किया. जो चावड़ा राजवंश, सोलंकी राजवंश और चालुक्य राजवंश की ६०० से भी ज्यादा सालो तक राजधानी रही जिसे आज लोग पाटन के नाम से जानते है.
पाटन जिसे कई सालो पहले अनहिलपुर पाटन के नाम से जाना जाता था. जिसकी स्थापना श्री चावड़ा राजवंशज गुर्जरेश्वर अनहिलपुर पाटनपति क्षत्रिय शिरोमणि वीर वनराज चावड़ा ने की थी. जरा आप ही सोचिए की, जिस राजा के नाम को इतनी सारी उपाधियों से नवाजा गया हो वह राजा कैसा होगा. पर बड़े ताज्जुब की बात है की, आज उस राजा का नाम भी कोई नही जानता.
तो आइए जानते है आज के इस लेख में गुजरात के एक ऐसे ही गुमनाम राजा के बारे में…..

श्री चावड़ा राजवंशज गुर्जरेश्वर अनहिलपुर पाटनपति क्षत्रिय शिरोमणि वीर वनराज चावड़ा का इतिहास (Vanraj Chavda History)
इतिहास की वहवाई भी तभी होती है जब उस इतिहास में कोई घटना हो और उस घटना को सही ढंग से लिखा गया हो. आसानी से राज करने वाले राजवंशों का कोई मतलब नहीं होता. अगर हम चावड़ा राजवंश की बात करे तो वनराज चावड़ा से लेकर क्षेमराज की मृत्यु तक सभी जानकारी बहुत ही आसानी से मिल जाती है.
प्राचीन गुजरात में ऐसे कई राजवंश थे. जिन्होंने आपस में और गुजरात से बाहर कई युद्ध किए थे. जिसकी असर पंचासर ( गुजरात का एक प्रदेश) तक हुई थी. कन्नौज के राजा भुवड़ ने पंचासार पर हमला किया जिसमें पंचासर की हार हुई. उस युद्ध में पंचासर के राजा जयशिखरी की मृत्यु हो गई थी.
युद्ध में पराजय होने के पहले राजा जयशीखरी ने अपनी पत्नी रूपसुंदरी को अपने साले सुरपाल के साथ जंगल में भेज दिया. जंगल में रूपसुंदरी ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया. जंगल में जन्म होने के कारण मामा सूरपाल ने उस बालक का जन्म वनराज रखा. जंगल में रहने वाले आदिवासी रूपसुंदरी को अपनी रानी और वनराज को अपने राजकुवर की तरह मानते थे.
वनराज के मामा सुरपाल ने उसे तीरंदाजी, तलवारबाजी और घुड़सवारी सिखाना शुरू किया. जब वे समझ बना तो उसमें अपने पिता द्वारा खोए हुए राज्य को फिर से प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत हुई. वनराज के मामा सुरपाल उनका मार्गदर्शन करते रहे. वनराज चावड़ा ने राजा भुवड़ के राज्य में लूटपाट शुरू कर दी.
थोड़े ही समय में वनराज ने बहादुर सिपाहियो को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू किया. धीरे-धीरे उसकी सेना बड़ी होती गई. अब वनराज जंगल के रास्तों, घाटियों और बीहड़ों का राजा बन चुका था.
वनराज चावड़ा की बहादुरी के किस्से(Stories of bravery Vanraj Chavda)
वनराज चावड़ा ने जंगल में एक दोस्त बनाया था. जिसका नाम अनहिल भरवाड़ था. अनहिल ने वनराज को अपनी सेना बढ़ाने में बहुत मदद की थी और उसे अपने पिता का राज्य वापस दिलवाने का भी वचन दिया था.
एक बार की बात है, वनराज चावड़ा, अनहील भरवाड़ और मामा सुरपाल कन्नौज को लूटने के इरादे से रात के समय कन्नौज में गए. वहा उन्होंने एक जैन समुदाय के एक घर में डांका डाला. पर गलती से वनराज का हाथ घी से भरे हुए मटके में चला गया और मटके का घी उसके हाथ में लग गया. वनराज को अहसास हुआ को जिस घर का खाना मेरे हाथो में लगा हो उसे में कैसे लूट सकता हु.
इसीलिए वह अपने दोस्तो के साथ वापस आ गया और उस घर की लड़की को अपनी बहन मान ली. वनराज ने अपनी मुंहबोली बहन को वचन दिया की जब कभी भी वह कन्नौज को जीत लेगा तो वह राजतिलक उसके ही हाथो से करवाएगा.
ऐसे वनराज ने अपनी उदारता का उदाहरण दिया था. उस दिन के हादसे के बाद वनराज चावड़ा अपने दोस्तो और जंगल के आदियासियो में बहुत ही लोकप्रिय हो गया.
एक बार कि बात है, वनराज, उसका मामा सुरपाल और दोस्त अनाहिल भरवाड़ जंगल में अपने शिकार की राह देख रहे थे. तभी उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति हाथ में तरकश लिए हुए घी का ठेला लिए हुए शीघ्रता से चल रहा है.
वनराज ने उसे चुनौती दी:
वही पर रुक जाओ, अगर तुमने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो जान जाओगे.
चांपा ने उतर देते हुए:
वही पर खड़े हो जाओ! जो मरना चाहता है तो मेरे सामने आना. यह कहकर चांपा वाणिया ने अपने तरकश के पाँच तीर में से दो तीरों को तोड़कर फेंक दिया.
यह देखकर वनराज और उसके साथी भौचक्के रह गए.
भौचक्के सुरपल ने चांपा से पूछा:
ज्यादा बहादुर मत बन, तीर तो हम भी चला सकते है, लेकिन तुमने अपने तरकश के पांच तीर में से दो तीरों को क्यों तोड़ा?
चांपा जवाब देते हुए:
इतना भी नहीं समझते? उसने अपनी तीन उंगलियां दिखाते हुए कहा, तुम तीन हो, इसलिए तुम्हारे लिए तीन तीर ही काफी है.
वनराज ने पूछा:
हे वीर ! आपका नाम क्या हे.
पूरी बहादुरी के साथ चांपा:
मेरा नाम चांपा वाणिया है.
घभराते हुए अनाहिल भरवाड़
चांपा, अब बहादुरी छोड़ो और जो कुछ तुम्हारे पास जो कुछ भी है दे दो और अपना रास्ता नापो. क्या तुम नहीं जानते, तुम अकेले हो और हम तीन है.
चांपा जवाब देते हुए:
भले ही तुम तीन हो, फिर भी तुम मुझे हरा नही सकते. अब तुम्हे क्या कहूं ऐसे झगड़े तो मेरे लिए रोज की बात है. पर अब ये क्या समय है पहले जयशीखरी और सुरपाल का जिक्र होते ही लुटेरे दुम उठाकर भाग जाते थे.
तभी सुरपाल:
तो सुनो भाई चांपा, में ही सुरपाल हूं और यह जयशीखरी का पुत्र और मेरा भांजा वनराज है और यह वनराज के बचपन का दोस्त अनहिल भरवाड़ है.
इतना सुनते ही चांपा के होश उड़ गए. उसने तीनों को गले लगा लिया. चांपा ने एक दोस्त के रूप में राज्य वापस पाने के लिए वनराज की मदद करने का वादा किया. चांपा जितना वीर था उतना ही धनी भी था. उसकी मदद से वनराज और उसके मामा सुरपाल ने एक बहुत बड़ी सेना तैयार कर ली. फिर उन्होंने कन्नौज पर हमला किया और भुवड़ को युद्ध हरा दिया. ५० वर्ष की आयु में वनराज ने अपना राज्य फिर से जीत लिया.
ईस. ६९० में वनराज ने अपने पिता के राज्य को फिर से जीत लिया और अपने बचपन के दोस्त अनहिल भरवाड़ के नाम से एक नया राज्य बनाया. उसने अपने नए राज्य का नाम अनहिलपुर पाटन रखा. अनहिलपुर पाटन को अपने राज्य की राजधानी बनाया. कन्नौज में अपनी मुंहबोली बहन को दिए हुए वादे के मुताबिक अपना राजतिलक उसके हाथो करवाया.
एक राजा के रूप में वनराज न्यायप्रिय, परोपकारी और उदार था. उसने जैन धर्म को एक राज्य दिया और कई मंदिर बनवाए. राजा बनने के बाद भी वनराज उन्हे कभी नही भुला जिसने मुश्किल समय में उसका साथ दिया था. चांपा वाणिया की मदद के बदले वनराज ने आज के वड़ोदरा के निकट पावागढ़ पर्वत की तलहटी में एक नया नगर बसाया और उसका नाम अपने दोस्त चांपा वाणिया के नाम पर ‘चंपानेर’ रखा.
वनराज चावड़ा ने जैन शैलगुणशूरी की इच्छा का सम्मान करते हुए अनहिलपुर पाटन में पंचसारा पार्श्वनाथ के देरासर का निर्माण करवाया. लोगों के अनुरोध पर वनराज ने देरासर में अपनी प्रतिमा भी स्थापित करवाई. पंचसारा पार्श्वनाथ देरासर आज भी अपनी पवित्रगाथा सुनता खड़ा है और वहां आज भी वनराज चावड़ा की मूर्ति नजर आती है. वनराज चावड़ा ने दीर्घ जीवन व्यतीत किया और साठ वर्षों तक पाटन पर शासन किया. वनराज चावड़ा के बाद उसका बेटा क्षेमराज गद्दी पर आया.
K.B.C 13 में एक बार पूछा गया था.:
इनमें से किस शहर की स्थापना वनराज चावड़ा द्वारा की गई थी और इसका नाम उसके दोस्त अनहिल भरवाड़ के नाम पर रखा गया था?
- अहमदाबाद
- सूरत
- पाटन
- राजकोट
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