
पर्यावरण प्रदूषण की प्राथमिक जानकारी – Paryavaran Pradushan in hindi
पर्यावरण प्रदूषण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पर्यावरण और प्रदूषण. पर्यावरण का अर्थ होता है हमारे आसपास फैला हुआ वातावरण और प्रदूषण का अर्थ होता है दूषित.
अर्थात हमारे आसपास फैले हुए पर्यावरण का दूषित होना पर्यावरण प्रदूषण Paryavaran Pradushan कहलाता है.
पर्यावरण प्रदूषण का सामान्य भाषा में अर्थ पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट तथा पर्यावरण का दोषमुक्त होना है. पर्यावरण का खराब हो जाना, बिगड़ जाना, असंतुलित हो जाना भी प्रदूषण अर्थ को व्यक्त करता है . पर्यावरण प्रदूषण Paryavaran Pradushan के वास्तविक निहित अर्थ को इन परिभाषाओं में व्यक्त किया गया है।
अभी के समय में पर्यावरण प्रदूषण एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुका है जो कि यह एक गंभीर समस्या है. अभी के समय में संपूर्ण विश्व यह समस्या से जूझ रहा है.
प्रदूषण के प्रकार – type of Paryavaran Pradushan
वैसे तो प्रदूषण के कई प्रकार है परंतु प्रदूषण के मुख्य प्रकार यह है.
१.वायु प्रदूषण air pollution
२.भूमि प्रदूषण water pollution
३.जल प्रदूषण soil pollution
वायु प्रदूषण Air pollution
वायु मानव, प्राणियों व वनसति जगत के लिए आवश्यक तत्त्व है. वायुमंडल में विभिन्न गैसों का अंश विद्यमान है. जब सामान्य मात्रा में अधिकता या कमी आ जाती है तो वायु प्रदूषण की दशा उत्पन्न हो जाती है. वायु प्रदूषण को प्रदूषण निवारण अधिनियम 1981 मे इस प्रकार परिभाषित किया गया है – “वायु प्रदूषण से वायुमंडल में उपस्थित कोई ठोस, तरल या गैस युक्त पदार्थ जिसमें ध्वनि शामिल है ऐसे संकेन्द्रण में अभिप्रेत है जो मानव या अन्य जीव प्राणी या पौधों या संपत्ति या पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है या हानिकारक होने के लिए प्रवृत्त है.”
हमारे वातावरण मे गैसो का अनुपात है – नाइटोजन 78.08, ऑक्सीजन 20.95%, ऑर्गन 0.93%, कार्बन डायऑक्साइड 0.03% हीलियम 0.02%, हाइड्रोजन 0.01%, और ओजोन 0.03%. परंतु वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा प्रतिवर्ष बढ़ने से वायु प्रदूषण हो रहा है .
वायु प्रदूषण के कारण कई हानिकारक प्रभाव दिखने लगे है,जैसे की मौसम व जल और वायु बदलना, ओजोन परत का क्षरण, स्मोग, पौधों पर खराब असर है.
जल प्रदूषण water pollution
जल(पानी) मानव के लिए ही नहीं परंतु अन्य जीव और वनस्पतियों के लिए भी जीवनआधार है. पृथ्वी पर पीनेलायक जल अत्यंत कम मात्रा मे है. अगर इसका उपयोग किया गया तो बीमारियाँ फैलाता है. जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन जो मानवीय तथा जलीय जीवन पर घातक असर डालते हो तो उसे जल प्रदूषण कहते है. यह प्रदूषण मानव के भोजन, मानव व पशुओं के स्वास्थ्य, कृषि आदि को अनुपयुक्त व घातक बना देता है. जल प्रदूषण के मुख्य कारण है :- औद्योगिक अपशिष्ठ, मानव द्वारा उत्पन्न गंदगी, कृषि में रासायनिकों का प्रयोग, शवों को जल में बहाना, एसिडिक वर्षा, खनिज तेल आदि.
भूमि प्रदूषण soil pollution
भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणो मे ऐसा कोई अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्य व अन्य जीवो या भूमि की प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति या उपयोगिता पर पड़े तो वह भूमि प्रदूषण कहलाता है. इसे मृदा प्रदूषण भी कहते है.
भूमि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत जंगलों का कम होना, दावा नल या जंगल मे आग लगना, भूमि अपरदन अत्याधिक मात्रा मे रासायनिक उर्वरको का प्रयोग, जीव और कीट के खरपतवार नाशको का उपयोग औद्योगिक एव शहरी कचरे को दबाना आदि.
भूमि प्रदूषण से मानव में निम्न रोग व बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं– एनथाक्स, हुकवार्म, टिटनस, आन्त्रीय ज्वर, दस्त पेचिस, दीर्घकालीन सूजन आदि.