ताना और रीरी Tana Riri
Tana Riri के संगीत ने बचाई तानसेन(Tansena) की जान। ये बात है ईस 1564 की जब संगीतकार बैजू के घर दो लड़कियों का जन्म होता है। जिनका नाम आचार्य बैजू बड़े प्यार से ताना और रीरी रखते है। ताना और रीरी का जन्म गुजरात राज्य के वडनगर में हुआ था। वडनगर शब्द दो अक्षरो से बना है `वद’और `नागर’। ताना और रीरी को संगीत विरासत में मिला था।
Tana riri story
ताना और रीरी(Tana Riri) जो नरसिंह महेता की पौत्री थी। नरसिंह महेता जो गुजरात के प्रसिद्ध संगीतकार और भजनकार थे। जिनकी गिनती भारत के महान संत और संसारी साधुओं में की जाती है। उनका यही संगीत ताना और रीरी को वारसे में मिला था। और यही संगीत उनके बलिदान का कारण भी बना।
यह कहानी की शरुआत होती है ईस 1582 में। जब दिल्ली के सुल्तान अकबर ने भारत विजय की इच्छा से अपने साम्राज्य का विस्तार करना शूरु किया तब उसने अपनी वीरता और पराक्रम से कई राज्यो को जीत लिया। अकबर 1587 में एक एक करके गुजरात के कई हिस्सों जीतता हुआ अहमदाबाद आया। तब उसके साथ संगीतकार उस्ताद तानसेन भी थे। जब वह अहमदाबाद आये तब उस्ताद तानसेन के प्रस्तावक की मृत्यु हो गई। उनके गम में तानसेन ने दीपक राग गाया। जिनके प्रभाव से उस्ताद तानसेन भी थोड़े जल गए।
तानसेन की जान बचाने के लिए अब मल्हार राग की जरूरत थी। पर किसीको मल्हार राग नही आता था। तब अकबर के सेनापति अमजद खान को वड नगर में रहती ताना और रीरी के बारे में बताया। अकबर की विनती की वजह से ताना और रीरी ने मल्हार राग गाया। जिसकी वजह से उस्ताद तानसेन की जान बच गई। इस बात के खुश होकर अकबर ने ताना और रीरी को फरीदाबाद के महल में गाने के लिए आमंत्रित किया पर ताना और रीरी नागर ज्ञाति की थी। जिन्होंने अपने कुलदेवता के सामने ही संगीत गाने की कसम खाई थी। इसी वजह से उन्होंने अकबर के इस आमंत्रण को अस्वीकार किया।
Tana Riri Biography
अकबर के सेनापति ने जब उनसे जबरजस्ती की तब वह मान गई और दो दिन बाद आने को कहा। जब दो दिन बाद अकबर ने ताना और रीरी को लेने के लिये पालखिया भेजी तब उनको खबर मिली के ताना और रीरी ने कुवें में कूद कर अपनी जान दे दी। इस बात से अकबर को इतना दुख हुआ कि उनको अपने जीवन काल मे कभी इतना दुख नही हुआ।
जब संगीतकार तानसेन ने ताना और रीरी(Tana Riri) के बारे में और जानने का प्रयास किया तब उनको पता चला कि ताना और रीरी राजा मानसिंह तोमर संगीतशाला के आचार्य बैजू की बेटियाँ थी। इस बात से तानसेन को भी बहुत दुख हुआ। अकबर ने और तानसेन ने ताना और रीरी के पिता बैजू और माता शर्मिस्था से माफी मांगी। ताना और रीरी ने अपनी संस्कृति और समाज के लिए अपनी जान दी थी। उनके बलिदान को लोग आज भी याद करते है।
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