अडालज बावड़ी : एक अंजाना इतिहास।

अडालज बावड़ी : एक अंजाना इतिहास। 
इतिहास में जब कभी भी कोई चीज बनी है तो उसके बनने के पीछे कोई कहानी तो होती
ही है। और जब कोई चीज दिलचस्प हो तो उसके बनने के पीछे की कहानी उतनी ही
दिलचस्प होती है। अडालज की बावड़ी दिखने में जितनी सुंदर है उसके बनने के पीछे
की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है। 
adalaj ni vav
अडालज की बावड़ी गुजरात राज्य के पाटनगर गांधीनगर के पास अडालज में स्थित है।
बावड़ी को गुजराती में वाव भी कहते है। बावड़ी या वाव जो एक सीढ़ीदार कुवा होता
है। जिसका इस्तेमाल प्राचीन समय मे पानी का संग्रह करने के लिए किया जाता था।
बावड़ी में पानी को नजदीक के तालाब में से नहर बना कर लाया जाता था। 
अडालज की बावड़ी का निर्माण ईस 1498-99 के बीच अडालज के राजा रणवीर सिंह ने
प्रारंभ करवाया था। इसकी वास्तुकला में भारतीय शैली के साथ इस्लामिक शैली को भी
बहुत अच्छी तरह से नकासा गया है। यह बावड़ी पांच मंजिला है और इसका आकार
अष्टभुजाकार है।यह बावड़ी सिर्फ 16 नक्कासी वाले स्तम्भ पर खड़ी है। इस बावड़ी का
निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है की दिन के समय मे केवल थोड़ी देर के लिए सूरज
की रोशनी बावड़ी के अंदर तक जाती है। इस के कारण बाहर के वातावरण के मुकाबले
बावड़ी के अंदर का तापमान ठंडा रहता है। यही कारण है की गर्मियों की छुट्टियों
में यहा पर लोगो का जमावड़ा रहता है। 
Details of stone carving at Adalaj Stepwell IV%252C Adalaj%252C Gujarat opt
उन्होंने कहा कि एक निश्चित समय मे इस बावड़ी का निर्माण पूरा हो जाएगा तो वह
सुल्तान से विवाह करेगी। उस शर्त के अनुसार सुल्तान ने बावड़ी का निर्माण पूरा
करवाया। जब रुदाबाई बावड़ी को देखने के लिए वहा पहुची तब रानी रुदाबाई ने बावड़ी
में कूद कर अपनी जान देदी। कहते है की रानी रुदाबाई की आत्मा आज भी उस बावड़ी
में भटकती है। 
सुल्तान ने बावड़ी बनाने वाले कारीगरों को भी मार दिया था क्योंकि वह नही चाहता
था कि इसी सुंदर बावड़ी कभी भी इतिहास में बने। बावड़ी को बनाने वाले कारीगरों को
कब्र बावड़ी के ठीक पीछे है। यह बावड़ी आज भी उतनी ही सुंदर है जितनी पहले थी। इस
बावड़ी को अब भारत सरकार के द्वारा पुरातत्व विभाग की निगरानी में रखा गया
है। 

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