महाबली राजा बाली जीवनी, कहानी, शक्तिशाली होंने की गाथा, मुत्यु Mahabali Raja Bali Biography

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महाबली राजा बाली Mahabali king bali  जो किष्किंधा के राजा
थे. यह कहानी हमे कई पौराणिक कथाओं में वर्णित मिलती है…खास करके रामायण
Ramayan में इसका वर्णन बहुत अच्छी तरह से किया गया है. 
महाबली बाली Mahabali bali को कुछ कथाओं में एक सज्जन पुरुष के रूप में
वर्णित किया गया है. जैसे कि वह परम पिता ब्रह्मा का परम भक्त था. बाली को कई
प्रकार की सिद्धिया प्राप्त थी. उसकी भुजाओ में एकसो हाथियो का बल था.
पर महाबली बाली Mahabali bali को कुछ कथाओं में एक खलनायक के रुओ में
वर्णित किया गया है. जैसे कि अपने ही भाई को देश निकाना करना. भाई सुग्रीव की
पत्नी का हरण करना. तो आइये जानते है महाबली बाली का जन्म कैसे हुआ, कैसे वह
इतना शक्तिशाली हुआ, रावण के साथ युद्ध और कैसे हुई मृत्यु.

महाबली राजा बाली की कहानी – Story of MAHABALI RAJA BALI

यह कहानी हमे रामायण Ramayan  में वर्णित मिलती है.
रामायण Ramayan के अनुसार त्रेतायुग में किष्किंधा नगरी में
वानरराज वृक्षराज का शाशन था. वानरराज वृक्षराज बड़ा ही तेजस्वी और प्रतापी राजा
था. परंतु उसे अपनी शक्तियों पर बड़ा ही घमंड था.
एक बार वृक्षराज जंगल मे शिकार पर निकले थे. वहां उन्होंने एक सुंदर तालाब
देखा. उस तालाब का पानी अत्यंत  शुद्ध और रमणीय था. तालाब को देख वृक्षराज
को उअसमे स्नान करने की इच्छा हुई. पर उस तालाब में स्नान करने से कुछ वर्षों
के लिए लिंग परिवर्तन होता था.
यदि कोई पुरुष उस तालाब में स्नान करे तो वह स्त्री हो जाता…और यदि कोई
स्त्री स्नान कर तो वह पुरुष हो जाता था. पर इस बात से वृक्षराज अंजान थे.
वृक्षराज ने बड़े प्रसन्ता से उस तालाब में स्नान किया.
वृक्षराज जैसे ही उस तालाब में से स्नान करके निकले वह एक सुंदर स्त्री में
परिवर्तित हो गए थे. उसी समय इन्द्रदेव और सूर्यदेव आकाश मार्ग से जा रहे थे.
उन दोनों की नजर स्त्री रूपी वृक्षराज पर पड़ी…और वह दोनों वृक्षराज पर मोहित
हो गये.
उसी समय सूर्यदेव के तेज का एक अंश वृक्षराज की ग्रीवा पर पड़ा और इन्द्रदेव के
तेज का अंश वृक्षराज के बालों पर पड़ा. कुछ समय के बाद वृक्षराज ने दो तेजस्वी
पुत्रो को जन्म दिया. 
सूर्यदेव के तेज का एक अंश वृक्षराज की ग्रीवा पर पड़ने के कारण वह पुत्र
सुग्रीव नाम से प्रख्यात हुआ…और इन्द्रदेव के तेज का अंश वृक्षराज के बालों
पर पड़ने के कारण वह पुत्र बाली नाम से प्रख्यात हुआ. वह दोनों बड़े ही प्रतापी
और तेजस्वी थे.

बाली कैसे इतना शक्तिशाली हुआ – How Bali became so powerful

समय बीतता चला गया. बाली बचपन से ही परमपिता ब्रह्मा का परम भक्त था. बड़े होने
पर बाली ने ब्रह्माजी को प्रस्सन करने के लिए एक तपस्या करने का सोचा…और वह
किष्किंधा से दूर एकांत में चला गया.
बाली ने ब्रह्माजी को प्रस्सन करने के लिए एक कठोर तप किया. बाली लगातार एक
हजार वर्षों तक ब्रह्माजी की तपस्या करता रहा. काफी समय बीत जाने पर ब्रह्माजी
बाली की तपस्या से खुश हुए और बाली को वरदान मांगने को कहा.
बाली ने वरदान के रूप में बलशाली होना स्वीकारा. तब ब्रह्माजी ने कहा कि, ‘कोई
भी व्यक्ति तुम से युद्ध करने की इच्छा से आयेगा तो उसकी आधी शक्ति तुम में आ
जायेगी’ इस तरह बाली परम शक्तिशाली हुआ था. 

बाली और रावण का युद्ध – Battle of Bali and Ravana

रावण Ravan ने त्रेतायुग में भगवान शिव के वरदान के कारण तीनो लोको पर
विजय प्राप्त की थी. देवराज इंद्र को युद्ध मे परास्त करके वह बहुत खुश हो रहा
था. इसीलिए उसने लंका में एक दावत रखी थी.
जब यह बात की खबर बाली को मिली तो वह गुस्से से आग बबूला हो गया था. बाली ने
अपने पिता इन्द्रदेव की पराजय का बदला लेने की लिए रावण को युद्ध की चुनोती दी
थी. जैसे ही यह बात की खबर रावण तक पहुची तो वह बाली से युद्ध करने के लिए अपने
पुष्पक विमान में बैठकर किष्किंधा आया.
रावण Ravan जब किष्किंधा आया तब उसे पता चला कि, बाली समुद्र तट पर
संध्या पूजन कर रहा है. तब रावण समुद्र तट पर पहुछा और बाली को युद्ध की चुनोती
देने लगा. बाली नर उसी समय रावण को अपनी पूंछ में जकड़ लिया.
रावण ने पूंछ से छूटने के काफी प्रयास किये पर वह बाली की पकड़ से नही निकल
पाया. संध्या पूजन पूर्ण होते ही बाली ने रावण को अपनी बगल में दबोच लिया और
चारो समुद्र की परिक्रमा करने लगा. 
परिक्रमा पूर्ण होते ही बाली रावण को किष्किंधा के गया…और रावण को युध्द करने
का मौका दिया पर तब तक रावण को समज आ गया था कि वह बाली को परास्त नही कर सकता.
रावण ने बाली Bali से मित्रता कर ली और किष्किंधा पर कभी हमला ना करने
की कसम खाई.

कैसे हुई बाली की मृत्यु – How Bali died

त्रेतायुग में जब रावण ने माता सीता का हरण किया था तब सुग्रीव और उनके
अनुयायियों ने श्री राम sri ram की सहायता की थी. सुग्रीव को अपना राज्य
वापस दिलाने के लिए श्री राम ने ही बाली का वध किया था.
श्री राम ने बाली का वध एक पेड के पीछे छुप कर किया था…जब वह अपने भाई
सुग्रीव से युद्ध कर रहा था. परंतु बाली जब मृत्यु शैया पर था तब श्री राम ने
उसे वरदान दिया था की,”द्वापरयुग में जब श्री राम धरती और फिर से अवतरित होंगे
तब बाली के हाथों ही उनकी मुत्यु होगी.”

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