मोढेरा सूर्य मंदिर का इतिहास history of modhera sun temple

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सूर्य मंदिर : मोढेरा

मोढेरा का सूर्य मंदिर गुजरात राज्य के मेहसाणा जिले में स्थित मध्यकालीन मंदिर
है। भारत के दो सूर्य मंदिर विश्व विख्यात है। एक तो कोर्णाक का सूर्य मंदिर जो
ओडिसा राज्य के पूर्व में स्थित है। और दूसरा मोढेरा का सूर्य मंदिर जो गुजरात
राज्य में स्थित है। मोढेरा का सूर्य मंदिर पुष्पावती नदी के किनारे पर बना है।
सूर्य मंदिर का निर्माण ईस 1026 में हुआ था। इस सूर्य मंदिर का निर्माण पाटण के
राजा भीमदेव सोलंकी प्रथम के करवाया था। भीमदेव सोलंकी सूर्यदेव को अपना पूर्वज
मानते थे। सोलंकी राजवंश को सूर्यवंशि राजवंश कहते है। इसी लिए भीमदेव सोलंकी ने
सूर्यदेव को समर्पित यह सूर्य मंदिर बनाया था। यह सूर्य मंदिर उत्तर के चंदेला
मंदिर और दक्षिण में चोला मंदिर से प्रभावित होकर बनाया गया है।

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मोढेरा के सूर्य मंदिर पर कई बार हमला हुआ। विदेसी हमलावर अलाउदीन खिलजी के जब
गुजरात पर हमला किया था तब अलाउदीन खिलजी के सेनापति अब्दुल्ला खान के सूर्यमंदिर
पर हमला किया था। और इसे बहुत नुकसान पहुचाया था। दूसरी बार महमूद गजनी ने हमला
किया और इसे बहुत नुकसान पहुचाया।

सूर्यमंदिर की रचना मारु-गुर्जर स्थापत्य सैली से हुई थी। सूर्यमंदिर तीन हिस्सों
में बंटा हुआ है।
-सभा मंडप
-‎मुख्य गर्भगृह (गुम्मट)
-‎और सूर्य कुंड


सूर्य मंदिर का मुख्य गर्भगृह तीन हिस्सों में है। जिसमे मुख्य मंदिर , गर्भगृह
और गुढा नामक एक मंडप है। सूर्य मंदिर में एक सभा मंडप भी है और वह एक पानी से
भरा एक कुंड है जिसे लोग सूर्य कुंड के नाम से जानते है। सूर्य कुंड में पानी
पुष्पावती नदी में से आता है। मोढेरा का सूर्य मंदिर पुष्पावती नदी के किनारे पर
बना है। सुबह और शाम को सूर्य के किरण सूर्यकुंड के पानी मे से होकर मंदिर पर
पड़ते है तो वहाँ का नजारा देहने लायक होता है।  सूर्य मंदिर में प्रवेश के
लिए तीन प्रवेशद्वार है। जो सुंदर नक्काशी वाले कीर्ति तोरण के सुशोभित किया गया
है।

सूर्य कुंड के आसपास कई मंदिरों के अवशेष मिले है। और कई मंदिर आज भी वहाँ पर
मौजूद है जिसमें से कई मंदिर विश्णु ,शिव , नटराज और गणेशजी को समर्पित है। वहाँ
पर कई देवीओ के मंदिर है। वह माता पार्वती के बारह स्वरूप के बारह अलग अलग मंदिर
है। वहां पर शितला माता का भी मंदिर है।
सूर्य मंदिर में सूर्यदेव के बारह अवतारों की मूर्तियां थी। सूर्य मंदिर की रचना
इस तरह से की गई है कि समप्रकाशिय दिनों में (21मार्च और 21सेप्टेंबर)सूर्य की
पहली किरण सूर्य मंदिर के गर्भगृह में रखी मूर्ति पर पडती है। सूर्य मंदिर का
आकार अष्टकोणीय है जो आठ दिशाओ का चयन करता है। आठ दिशाओं आठ भगवानो के प्रतीक
है।
उत्तरदिशा : कुबेरदेव
दक्षिणदिशा : यमदेव
पूर्वदिशा : इन्द्रदेव
पच्चिमदिशा : वरुणदेव
उत्तर-पूर्वदिशा : रुद्रदेव(भगवान शिव का स्वरूप)
दक्षिण-पूर्वदिशा : अग्निदेव
उत्तर-पच्चिम दिशा : वायुदेव
दक्षिण-पच्चिम दिशा : नैऋति(भगवान शिव का स्वरूप)
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